Naat Sharif

फ़ासलों को ख़ुदा-रा ! मिटा दो जालियों पर निगाहें जमी हैं

फ़ासलों को ख़ुदा-रा ! मिटा दो जालियों पर निगाहें जमी हैं अपना जल्वा इसी में दिखा दो जालियों पर निगाहें जमी हैं फ़ासलों को ख़ुदा-रा ! मिटा दो रुख़ से पर्दा अब अपने हटा दो अपना जल्वा इसी में दिखा दो जालियों पर निगाहें जमी हैं फ़ासलों को ख़ुदा-रा ! मिटा दो जालियों पर निगाहें […]

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मो’जज़ा मेरे नबी का कह दिया तो हो गया

मो’जज़ा मेरे नबी का कह दिया तो हो गया आप ने क़तरे को दरिया कह दिया तो हो गया हाथ में तलवार ले कर आए जब हज़रत उमर आ मेरे दामन में आजा कह दिया तो हो गया आबदीदा थे ब-वक़्ते-अस्र जब हज़रत अली डूबे सूरज को ‘निकल जा’ कह दिया तो हो गया मस्जिदे-नबवी

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करम के बादल बरस रहे हैं, दिलों की खेती हरी भरी है

करम के बादल बरस रहे हैं, दिलों की खेती हरी भरी है ये कौन आया के ज़िक्र जिस का नगर नगर है गली गली है  ये कौन आया के ज़िक्र जिस का नगर नगर है गली गली है ये कौन बन कर क़रार आया, ये कौन जाने-बहार आया गुलों के चेहरे हैं निखरे निखरे, कली

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रुख़ दिन है या मेहरे समा येह भी नहीं वोह भी नहीं

रुख़ दिन है या मेहरे समा येह भी नहीं वोह भी नहीं शब ज़ुल्फ़ या मुश्के ख़ुता येह भी नहीं वोह भी नहीं मुम्किन में येह क़ुदरत कहां वाजिब में अ़ब्दिय्यत कहां ह़ैरां हूं येह भी है ख़त़ा येह भी नहीं वोह भी नही ह़क़ येह कि हैं अ़ब्दे इलाह और अ़ालमे इम्कां के शाह

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मैनूं मजबूरियां ते दूरियां ने मार्या

मैनूं मजबूरियां ते दूरियां ने मार्या सद लो मदीने आक़ा, करो मेहरबानियां  डाहड़ा हां ग़रीब आक़ा, कोल मेरे ज़र नहीं उड़के मैं कीवें आवां नाल मेरे पर नहीं असीं ते डेरा तेथों बड़ी दूर ला लया सद लो मदीने आक़ा, करो मेहरबानियां मैनूं मजबूरियां ते दूरियां ने मार्या कोण जाके दस्से सोहणे अल्लाह दे हबीब नु सद लो

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अल्लाहुम्म स़ल्लि अ़ला सय्यिदिना व मौलाना मुह़म्मदिन

अल्लाहुम्म स़ल्लि अ़ला सय्यिदिना व मौलाना मुह़म्मदिन व अ़ला आलिहि व स़हबिहि व बारिक व सल्लिम अल्लाह पढ़ता है दुरूद अपने हबीब पर रेहमान जो करता है वो तुम भी किया करो अल्लाहुम्म स़ल्लि अ़ला सय्यिदिना व मौलाना मुह़म्मदिन व अ़ला आलिहि व स़हबिहि व बारिक व सल्लिम सरवर कहूं के मालिको-मौला कहूं तुझे बाग़े-ख़लील

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दिलो-निगाह की दुनिया नई नई हुई है

दिलो-निगाह की दुनिया नई नई हुई है दुरूद पढ़ते ही ये कैसी रौशनी हुई है  मैं बस युहीं तो नहीं आ गया हूं महफ़िल में कहीं से इज़्न मिला है तो हाज़री हुई है ये सर उठाए जो मैं जा रहा हूं जानिबे-ख़ुल्द मेरे लिये मेरे आक़ा ने बात की हुई है रज़ा पुल से

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लजपाल नबी मेरे दर्दां दी दवा देणा

लजपाल नबी मेरे दर्दां दी दवा देणा जदो वक़्ते-नज़अ आवे, दामन दी हवा देणा  मैं नात तेरी पढ़ना, मैं ज़िक्र तेरा करना इस ज़िक्र दी बरकत नाल मेरी क़ब्र वसा देणा दिल रोंदा ए जांदे ने जदों लोकी मदीने नूं हुण सानूं वी या आक़ा ! दरबार विखा देणा आक़ा तेरी महफ़िल विच झोलियाँ विछा बैठे

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मेरी बात बन गई है तेरी बात करते करते

इस करम का करूँ शुक्र कैसे अदा जो करम मुझ पे मेरे नबी कर दिया मैं सजाता हूँ सरकार की मेहफ़िलें मुझ को हर ग़म से रब ने बरी कर दिया   मेरी बात बन गई है तेरी बात करते करते तेरे शहर में मैं आऊं तेरी नात पड़ते पड़ते तेरे इश्क़ की बदौलत मुझे

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अब मैरी निगाहों में जचता नहीं कोई

अब मैरी निगाहों में जचता नहीं कोई जैसे मेरे सरकार है ऐसा नहीं कोई तुमसा तो हंसी आंखे ने देखा नहीं कोई ये शाने लताफत हे के साया नहीं कोई अब मैरी निगाहों में जचता नहीं कोई ए जरफे नजर देख मगर डेख अदब से सरकार का जलवा है तमाशा नहीं कोई अब मैरी निगाहों

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