देखते क्या हो ! अहल-ए-सफ़ा !

आप आए तो, दुनिया मुनव्वर हुई बज़्म-ए-कौनैन में रौशनी घर घर हुई हादी-ए-दो-जहाँ ! हो सलाम आप पर सरवर-ए-इन्स-ओ-जां ! हो सलाम आप पर देखते क्या हो ! अहल-ए-सफ़ा ! आ पहुंचे महबूब-ए-ख़ुदा या’नी हो चुके जल्वा-नुमा शाह-ए-हक़, शाह-ए-बतहा ला-इलाहा इल्लल्लाह, ला-इलाहा इल्लल्लाह ला-इलाहा इल्लल्लाह, ला-इलाहा इल्लल्लाह आमन्ना बि-रसूलिल्लाह, आमन्ना बि-रसूलिल्लाह ख़ल्क़ के रहबर आ पहुंचे […]

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दरबार-ए-मदीना सा दरबार नहीं मिलता

दरबार-ए-मदीना सा दरबार नहीं मिलता सरकार-ए-दो-आलम सा सरकार नहीं मिलता हर ज़र्रा चमकता है अनवार-ए-इलाही से तयबा का कोई ज़र्रा बे-कार नहीं मिलता दरबार-ए-मदीना सा दरबार नहीं मिलता सरकार-ए-दो-आलम सा सरकार नहीं मिलता ऐ मिस्र के बाज़ारो ! अच्छे हो बहुत लेकिन तयबा से हसीँ कोई बाज़ार नहीं मिलता दरबार-ए-मदीना सा दरबार नहीं मिलता सरकार-ए-दो-आलम सा सरकार नहीं

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नात सरकार की पढ़ता हूँ मैं

नात सरकार की पढ़ता हूँ मैं बस इसी बात से घर में मेरे रहमत होगी इक तेरा नाम वसीला है मेरा रंज-ओ-ग़म में भी इसी नाम से राहत होगी ये सुना है कि बहुत गोर अँधेरी होगी क़ब्र का ख़ौफ़ न रखना, ए दिल ! वहाँ सरकार के चेहरे की ज़ियारत होगी कभी यासीं ,

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जो हो चुका है, जो होगा, हुज़ूर जानते हैं

जो हो चुका है, जो होगा, हुज़ूर जानते हैं तेरी ‘अता से, ख़ुदाया ! हुज़ूर जानते हैं   वो मोमिनों की तो जानों से भी करीब हुए कहाँ से किस ने पुकारा, हुज़ूर जानते हैं   हिरन ये कहने लगी, छोड़ दे मुझे, सय्याद ! मैं लौट आऊँगी वल्लाह, हुज़ूर जानते हैं   हिरन ने,

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मैं सो जाऊँ या मुस्तफ़ा कहते कहते

मैं सो जाऊँ या मुस्तफ़ा कहते कहते खुले आँख सल्ले-‘अला कहते कहते   हबीब-ए-ख़ुदा का नज़ारा करूँ मैं दिल-ओ-जान उन पर निसारा करूँ मैं   मैं सो जाऊँ या मुस्तफ़ा कहते कहते खुले आँख सल्ले-अला कहते कहते   मुझे अपनी रहमत से तू अपना कर ले सिवा तेरे सब से किनारा करूँ मैं   मैं

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क्यूँकर न मेरे दिल में हो उल्फ़त रसूल की

क्यूँकर न मेरे दिल में हो उल्फ़त रसूल की जन्नत में ले के जाएगी चाहत रसूल की   चलता हूँ मैं भी, क़ाफ़िले वालो ! रुको ज़रा मिलने दो बस मुझे भी इजाज़त रसूल की   पूछें जो दीन-ओ-ईमाँ नकरैन क़ब्र में उस वक़्त मेरे लब पे हो मिदहत रसूल की   क़ब्र में सरकार

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लुत्फ उन का आम हो ही जाएगा

लुत्फ उन का आम हो ही जाएगा शाद हर नाकाम हो ही जाएगा जान दे दो वादा-ए-दीदार पर नकद अपना दाम हो ही जाएगा शाद है फिरदोस यानी एक दिन क्रिस्मत-ए-ख़ुद्दाम हो ही जाएगा याद रह जाएँगी ये बे-बाकियाँ नफ़स तू तो राम हो ही जाएगा बे निशानों का निश मिटता नहीं मिटते मिटते नाम

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बड़ी उम्मीद है सरकार क़दमों में बुलाएँगे

बड़ी उम्मीद है सरकार क़दमों में बुलाएँगे करम की जब नज़र होगी मदीने हम भी जाएँगे दिलों में जो दिये उन की मोहब्बत के जलाएँगे यक़ीनन वो सुराग़-ए-मंज़िल-ए-मक्सूद पाएँगे अगर जाना मदीने में हुवा हम ग़म के मारों का मकीन-ए-गुंबद -ए-ख़ज़रा को हाल-ए-दिल सुनाएँगे क़सम अल्लाह की! होगा वो मंज़र दीद के क़ाबिल क़यामत में

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सोचता हूँ मैं वो घड़ी, क्या अजब घड़ी होगी

सोचता हूँ मैं वो घड़ी, क्या अजब घड़ी होगी जब दर-ए-नबी पर हम सब की हाज़री होगी आरज़ू है सीने में, घर बने मदीने में हो करम जो बंदे पर, बंदा-परवरी होगी किब्रिया के जल्वों से क्या समाँ बँधा होगा महफ़िल-ए-नबी जिस दम ‘अर्श पर सजी होगी बात क्या है! बाद-ए-सबा इतनी क्यूँ मुअत्तर है

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तू शम-ए-रिसालत है

तू शम-ए-रिसालत है, ‘ आलम तेरा परवाना तू माह-ए- नुबुव्वत है, ऐ जल्वा-ए-जानाना ! जो साक़ी-ए-कौसर के चेहरे से नक़ाब उठे हर दिल बने मय-खाना, हर आँख हो पैमाना दिल अपना चमक उठे ईमान की तल अत से कर आँखें भी नूरानी, ऐ जल्वा-ए-जानाना ! सरशार मुझे कर दे इक जाम-ए-लबालब से ता- हश्र रहे,

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