सोचता हूँ मैं वो घड़ी, क्या अजब घड़ी होगी
सोचता हूँ मैं वो घड़ी, क्या अजब घड़ी होगी जब दर-ए-नबी पर हम सब की हाज़री होगी आरज़ू है सीने में, घर बने मदीने में हो करम जो बंदे पर, बंदा-परवरी होगी किब्रिया के जल्वों से क्या समाँ बँधा होगा महफ़िल-ए-नबी जिस दम ‘अर्श पर सजी होगी बात क्या है! बाद-ए-सबा इतनी क्यूँ मुअत्तर है […]
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