सोचता हूँ मैं वो घड़ी, क्या अजब घड़ी होगी

सोचता हूँ मैं वो घड़ी, क्या अजब घड़ी होगी जब दर-ए-नबी पर हम सब की हाज़री होगी आरज़ू है सीने में, घर बने मदीने में हो करम जो बंदे पर, बंदा-परवरी होगी किब्रिया के जल्वों से क्या समाँ बँधा होगा महफ़िल-ए-नबी जिस दम ‘अर्श पर सजी होगी बात क्या है! बाद-ए-सबा इतनी क्यूँ मुअत्तर है […]

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तू शम-ए-रिसालत है

तू शम-ए-रिसालत है, ‘ आलम तेरा परवाना तू माह-ए- नुबुव्वत है, ऐ जल्वा-ए-जानाना ! जो साक़ी-ए-कौसर के चेहरे से नक़ाब उठे हर दिल बने मय-खाना, हर आँख हो पैमाना दिल अपना चमक उठे ईमान की तल अत से कर आँखें भी नूरानी, ऐ जल्वा-ए-जानाना ! सरशार मुझे कर दे इक जाम-ए-लबालब से ता- हश्र रहे,

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जितना दिया सरकार ने मुझ को, उतनी मेरी औक़ात नहीं

जितना दिया सरकार ने मुझ को, उतनी मेरी औक़ात नहीं ये तो करम है उन का वर्ना मुझ में तो ऐसी बात नहीं तू भी वहीं पर जा कि जहाँ पर सब की बिगड़ी बनती है एक तेरी तक़दीर बनाना उन के लिए कुछ बात नहीं तू भी वहीं पे जा जिस दर पर सब

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तेरे दामन-ए-करम में जिसे नींद आ गई है

तेरे दामन-ए-करम में जिसे नींद आ गई है जो फ़ना न होगी ऐसी उसे ज़िंदगी मिली है मुझे क्या पड़ी किसी से करूँ ‘अर्ज़ मुद्द’ आ मैं मेरी लौ तो बस उन्हीं के दर-ए-जूद से लगी है   वो जहान भर के दाता मुझे फेर देंगे ख़ाली मेरी तौबा, ऐ ख़ुदा ! ये मेरे नफ़्स

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ज़िक्रे अहमद से सीना सजा है, इश्क है ये तमाशा नहीं है

ज़िक्रे अहमद से सीना सजा है, इश्क है ये तमाशा नहीं है, वो भी दिल कोई दिल है जहां में, जिसमे तस्वीरे तैबह नहीं है। ऐ मेरी मौत रुक जा अभी तू, फिर चलेंगे (मिलेंगे) जहां तू कहेगी, अपने मश्के तसव्वुर में तैबह, मैंने जी भर के देखा नहीं है। हज की दौलत जिसे मिल

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बुलालो फिर मुझे ए शाहे बहरोबर, मदिने मैं

बुलालो फिर मुझे ए शाहे बहरोबर, मदिने मैं   बुलालो फिर मुझे ए शाहे बहरोबर, मदिने मैं   मैं फिर रोता हुवा आऊँ   मैं फिर रोता हुवा आऊँ, तेरे दर पर मदिने में       में पहुन्चू कोए जाना में, ग़रीबान चक सीना चक   में पहुन्चू कोए जाना में, ग़रीबान चक सीना

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बलगल उला बे कमालीही

बलगल उला बे कमालीही कश-फद-दु बी जमालीही   हसनत जमीउ खिसालीही सल्लु आलाहे वालेहि करू तेरे नाम पे जा फिदा ना बस एक जान दो जहाँ फिदा दो जहाँ से भी नही जी भरा करू क्या करोड़ो जहाँ नही सल्लुआलाहे वालेहि ……………. ना तो मेरा कोय कमाल है ना है दखल इस मे गुरूर का

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आज अश्क मेरे नात सुनाए तो अजब किया

आज अश्क मेरे नात सुनाए तो अजब किया सुनकर वोह मुझे पास बुलाए तो अजब किया उन पर तो गुनेहगार का सब हाल खूला है उस पर भी वोह दामन में छुपाए तो अजब किया मुंह ढानप के रखना रखना के गुनेहगार बहुत है मय्यत को मेरी देखने आए तो अजब किया ना जादे सफर

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मुझ पे भी चश्मे करम ऐ मेरे आक़ा करना

मुझ पे भी चश्मे करम ऐ मेरे आक़ा करना हक़ तो मेरा भी है रहमत का तकाज़ा करना तू किसी को भी उठाता नहीं अपने दर से के तेरी शान के शाया नहीं ऐसा करना मैं के ज़र्रा हूं मुझे वुसअते शहदा दे दे कि तेरे बस में है क़तरे को भी दरिया करना ये

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हो करम सरकार अब तो हो गए ग़म बेशुमार

या रसूल अल्लाह या हबीब अल्लाह मेरे आक़ा मेरे दाता मेरे आक़ा मेरे दाता मेरे आक़ा……. हो करम सरकार अब तो हो गए ग़म बेशुमार जान-ओ-दिल तुम पर फ़िदा ऐ दो जहां के ताजदार हो करम सरकार…. मैं अकेला और मसा’इल ज़िन्दगी के बेशुमार आप ही कुछ कीजिए ना ऐ शहे आली वक़ार हो करम

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